नेताओ के टट्टू

परते खुल रहीं हैं, पोल भी खुलेगी
देखतें हैं दोगलो की राजनीति, कब तक चलेगी
समय रहते जो ना कर पाए, वो अब क्या काम करेंगे
खुद जो खुद को बदल नहीं पाए, समाज क्या बदलेंगे
नीचा दिखाने की राजनीति जो करते हैं रोज
स्वप्न ले रहे है कि जल्द बनेंगे वो राजा भोज
करना कुछ नहीं, पर दिखावा है जरूरी
इसी लिए टट्टू रखने की है मजबूरी
टट्टूओं की सवारी करके नहीं पहुंचा जाता पार
जनता ने आपकी बार ठान ली लुटिया डुबोने की रार
जनता का रुझान जानकर क्यों रहे हो खीझ
अभी तो ये शुरुआत है अभी निकल गयी चीख



गमले साफ करवाने से पौधा नहीं लगता
गमले साफ करवाने से पौधा नहीं लगता
धूप मे रखने से बैंगन का भुर्ता नहीं बनता
वैसे ही टट्टूओ के नारों से कोई नेता नहीं बनता

Comments