नमस्कार दोस्तो, मैं हाथी पार्क इंदिरापुरम बोल रहा हूं। एक जमाना था जब मुझे बनाया गया था और मेरा नाम रखा गया अवंतिका बाई पार्क। यह नाम एक वीरांगना के नाम पर पड़ा था और इस पार्क के बीचों-बीच इस नाम को चरितार्थ करने वाली वीरांगना की एक मूर्ति भी लगनी थी जिसका चबूतरा बनाया गया था लेकिन आज इतने वर्षों बाद भी वह सिर्फ चबूतरा और मूर्ति लगाने का स्टैंड रह गया है मूर्ति कभी लगी ही नहीं। चूंकि जब मुझे बनाने का टेंडर पारित हुआ तब उसमें साफ तौर पर पार्क के बीचों बीच मूर्ति लगाने का भी जिक्र था परंतु कुछ काम समय और प्रशासन की भेंट चढ़ जाते हैं। खैर जब मुझे बनाया गया था तो उसमें बहुत सारे पेड़ पौधे लगाए गए थे सुंदर-सुंदर बगीचे बगिया बनाई गई थी फूलों के पौधे लगाए गए थे हरी घास लगाई गई थी और मेरा बचपन बहुत सुंदर दिखाई पड़ता था और मेरे बचपन को देखकर लोग यह कहते थे कि इसकी जवानी बहुत खूबसूरत होगी। उस समय लोग पार्क में घूमकर आनंदित होते थे। समय बदला दूसरी सरकार आई तो उसने पार्क में एक हाथी की मूर्ति लगा दी। अब चूंकि रानी अवंतिका बाई की मूर्ति नहीं लगी थी तो पार्क में लगी हाथी की मूर्ति देखकर लोग मुझे हाथी पार्क के नाम से पुकारने लगे यह नाम भी अच्छा था विशाल विकराल मेरी ताकत का अहसास करवाता था। उस समय पार्क की देखभाल भी होती थी और मेरी किशोरावस्था सुंदर बीत रही थी। मेरी देखरेख की जिम्मेदारी कभी जनता ने नहीं ली हमेशा प्रशासन ने ही अपने मन मुताबिक मुझे संभाला और मेरी देखभाल की। अब क्योंकि पेड़ बड़े हो रहे थे उनकी जड़े जमीन में नीचे तक जा रही थी तो ऊपरी पानी की कमी ज्यादा नहीं खलती थी मगर जो छोटे पौधे थे जो बगियाएं थी उनको पानी की जरूरत थी कभी उनको समय पर पानी मिल जाता था कभी नहीं मिलता था। लेकिन पार्क में घास थी जिसके कारण पौधों को नमी मिल जाती थी और वह जिंदा थे।
जब किसी का जन्म होता है तो उसको बीमारियों से बचाने के लिए हर प्रकार के टीके लगाए जाते हैं मेरे साथ भी यही हुआ। बीमारियों से बचाने के लिए शुरूआत में सब तरह की उपाय किए गए इसका एक कारण यह भी है कि यह शहर बसना शुरू हुआ था और GDA ही प्लॉट बेच रहा था या नक्शे पास कर रहा था तो उसे शहर के बीचो-बीच एक सुंदर पार्क भी दिखाना था ताकि महंगे दामों पर मकान और भूभाग को बेचा जा सके। यह एक सोची समझी प्लानिंग थी ताकि लोगों को लगे की समय बीतने के लिए एक सुंदर पार्क पास में ही है। समय बितता गया, आसपास की भूमि पर मकान बन गए लोग रहने लग गए पार्क में ज्यादा लोग आने लग गए तो ज्यादा देखभाल की भी जरूरत थी लेकिन इसके विपरीत जैसे ही मेरे पेड़ बड़े हुए GDA मेरे रखरखाव की तरफ से बिल्कुल आंखें बंद कर ली।
हालांकि टेंडर में साफ तौर पर लिखा था की GDA निरंतर रूप से पार्क की देखभाल करेगा और उसके लिए सफाई कर्मचारियों को नियमित करेगा। समय अंतराल पर ऐसे ऐसे लोग सत्ता में आ गए जिनको जनता की सुविधाओं से कोई लेनदेन नहीं था। जहां से कुछ मिलना नहीं था वहां उनको कुछ देखना भी नहीं था। टेंडर सफाई कर्मचारी रखरखाव सब कागजों में चलते रहे लेकिन वास्तविक जिंदगी में मेरी यानी हाथी पार्क की देखभाल करने वाला कोई नहीं था।कुछ लोगों ने आगे बढ़कर अगर इसकी शिकायत या सहयोग करने की पेशकश की तो उन्हें यह कहकर दुत्कार दिया गया कि ज्यादा चिंता है तो खुद कर लो हमें क्यों बताने आ रहे हो। अगर किसी घायल की कोई व्यक्ति चिंता करता है तो क्या अस्पताल या प्रशासन का उसे बचाने की कोई जिम्मेदारी नहीं है? बदलते मौसम और वातावरण के अनुसार गर्मियां ज्यादा गर्म होने लग गई जिसकी वजह से छोटे पेड़ पौधे बिना पानी के बिल्कुल झुलस जाते थे और पानी न मिलने से उनमें से अधिकतर फूलों की क्यारियां बगीचे सब धीरे-धीरे खत्म हो गए उनके सुंदर फूलों वाले पौधे पानी की गुहार लगाते लगाते सबकी आंखों के सामने सूख गए। मनुष्यों में कहावत है कि मरते को पानी पिलाने से पुण्य मिलता है लेकिन मेरे पार्क के पौधे इन्हीं मनुष्यों की आंखों के सामने मर गए किसी ने पानी पिलाना तो दूर हमें पानी दिखाना भी उचित नहीं समझा। क्या पता हम सिर्फ एक बार के पानी से जिंदा रह पाते। जिन फूलों को देखकर तुम्हारे बच्चों के मुंह पर मुस्कान आ जाती थी तुम मनुष्यों ने उन्हे भी तड़फकर मरने दिया। इस पार्क में आने वाले कई बच्चे तो बिना सुंदर फूलों का मुख देखे ही बड़े हो गए।सुबह-सुबह जो लोग मेरे पेड़ों की बनी हुई ऑक्सीजन को खींचने इस पार्क में आ जाते हैं उन्होंने भी कभी मेरे बचाव के बारे में नहीं सोचा सिर्फ अपने बचाव के बारे में सोचा। जो लोग मेरी हरी घास पर विचरण करते हुए स्वास्थ्य लाभ कमाते हैं उन्होंने कभी उस घास को पानी की एक बूंद भी नही पिलाई।
पिछली गर्मी में मेरे 8 से 10% वयस्क पेड़ सूख कर मर गए। पार्क की दीवारें और दरवाजे जो आवारा पशुओं को आने से रोकते थे वह सब टूट चुके हैं जिसकी चिंता करने वाला भी अब कोई नहीं है। जहां हरी घास होती थी वहां अब अब सुबह शाम बच्चों से लेकर अधेड़ उम्र के क्रिकेट खेलने वालों की भीड़ होती है जिसकी वजह से आगे भी घास उगने की कोई उम्मीद नहीं है। कोई अगर पार्क के बारे में चिंता करता भी है तो उसे टेंडर का झांसा देकर अगले महीने काम शुरू हो जाएगा यह बोलकर टाल दिया जाता है लेकिन यह कोई नहीं जानता कि मैं हर रोज इन झूठे झांसों की वजह से तिल तिल कर मर रहा हूं । इस शहर मे बड़े बड़े राजनीतिज्ञ, करोबारी, दानवीर, नॉकरिपेशा, स्वयंसेवी, जनसेवक इत्यादि रहते हैं जो हर वर्ष उसी जगह फिर से पौधा लगाने आते हैं जहाँ उन्होंने पिछले साल पैधा लगाया था और फोटो खिचवाने हैं लेकिन मेरी बीमार हालत और जरूरत पर एक बाल्टी पानी देने कभी नहीं आते। पूरे दिन मेरे पेड़ सभी को आक्सिजन देते हैं मगर शाम होते ही कुछ अराजक तत्व पार्क में बैठकर नशीला और जहरीला धुवा छोड़ते हैं जो पेडों को सूंघना पड़ता है। और तो और वो लोग रात को सोये हुए पेडों पर पेशाब भी करते हैं जो असहनीय होता है लेकिन क्या करें परोपकार ही हमारा धर्म है तो वो भी सह लेते हैं ।
इस वर्ष भी मेरे लगभग 10 से 20% पेड़ों ने अपने प्राण त्यागने में शुरू कर दिए हैं। मेरे सारे पेड़ अब भी इस यकीन पर जिंदा है कि शायद पानी की कुछ बंदे जल्द ही उन तक पहुंचेंगी। इसी आस में पार्क में आने वाले हे मनुष्यों मेरी आपसे हाथ जोड़कर यह विनती है कि मैं तुम्हें जीवन दाहिनी हवा मुफ्त में प्रदान करता हूं क्या तुम एक बाल्टी पानी मुझे मुफ्त में ना सही तो प्राणदायनी हवा के बदले में दान कर दोगे। पेड़ हमारे मित्र होते हैं, ये आपके पाठ्यकर्मों में पढाया जाता है, क्या आप मनुष्य भी हम पेडों के मित्र बनकर हमेंं थोड़ा पानी पिला दोगे। मुझे मालूम है कि तुम मनुष्य हो और तुम्हारे उपर किसी की अपील का कोई असर नहीं होता लेकिन फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है इसलिए मै ये गुहार लगा रहा हूँ।
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