2022 - किसानों का काल

2022 में असमय बरसात किसानों का काल बनकर आई है। मानसून के दौरान कम बारिश, फसल के दौरान भारी बारिश ने बाजरा, ज्वार, कपास, चावल आदि फसलों के साथ साथ आलू, मटर जैसी सब्जियों को भी प्रभावित किया है।

अक्टूबर नवंबर का मौसम कपास चावल इत्यादि फसलों के पकने का सीजन होता है मगर इस बार असमय बरसात ने फसलों को पकने से पहले ही बर्बाद कर दिया।  

  कृषि के लिए यह वर्ष अच्छा नहीं रहा। मानसून के दौरान हीटवेव और कम बारिश, इसके बाद फसल पकने के समय  भारी बारिश ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर खड़ी फसल को नष्ट कर दिया। 

जहाँ समय पर होने वाली बारिश से किसानों का मन मयूर नाचने लगता है और उनको मुनाफा नजर आने लगता है वही इस असमय होने वाली बारिश ने उन्हें घाटे का सौदा करवा दिया है।  किसानो की आमदनी कम और नुकसान ज्यादा उठाना पड़ा है। महंगे बीज, खाद, कीटनाशक, डीजल और महंगी मजदूरी ने पहले ही किसानो की कमर तोड़ रखी है ऊपर से ये बारिश का कहर काल बनकर टूट पड़ा है।  मुआवजे के नाम पर ऊंट के मुँह में जीरे के जितना ही मिलेगा जिस से मजदूरी का पैसा भी नहीं निकलेगा।




साल के शुरुआत में आलू की फसल ख़राब हुई।  फिर भीषण गर्मी ने गेहूँ की फसल में भी बढ़िया एवं भारी दाना नहीं बनने दिया। अब साल के अंत में कपास को भी बारिश ने डूबा दिया। हालांकि, धान की फसल कटने के लिए तैयार होने के कारण किसानों को कुछ उम्मीद थी मगर अक्टूबर 2022  की बारिश के कारण वो भी धराशायी हो गईं। रातभर हुई बारिश ने फसल को पूरी तरह से चौपट कर दिया। धान का दाना पानी में भीगकर फूल गया। गन्ना, ज्वार और बाजरा का भी यही हाल है। 

किसान मेहनत करके इसी उम्मीद में फसल उगता है कि अंत में उसे अपने परिवार के पालन पोषण के लिए कुछ तो मिलेगा मगर उसे कर्ज के आलावा कुछ नहीं मिलता। खेतीबाड़ी ही कमाई का एकमात्र जरिया होने के कारण बिना पैसे के परिवार को पलना अत्यंत मुश्किल कार्य है। 

सरकार नुकसान का विश्लेषण करेगी उसके बाद कहीं जाकर मुआवजे की कुछ रकम मिलने की उम्मीद है। किसान को फसल बीमा लेना तो अनिवार्य है मगर सही मुआवजा मिलना तो साहब लोगों की दयादृष्टि पर है। मुआवजे को लेकर भी सरकारी तंत्र से किसान खुश नहीं है। पहले से ही खाली हाथ किसानों को गलत  या कम मुआवजा मिलने कर कहीं गुहार लगाने का प्रावधान नजर नहीं आता उन्हें बैंक या अधिकारीयों द्वारा ही डांट डबटकर भगा दिया जाता है।  ऐसे में किसान को किस्मत पर रोने के अलावा कुछ नहीं सूझता। इसके आलावा फसल ख़राब होने पर मजदूरों को भी काम नहीं मिलता।  

निरंतर होने वाले नुकसान से बचने और उबरने के लिए छोटे किसान और मजदूरों को पलायन के  मजबूर होना है जिस से मजदूरी भी महंगी हो जाती है।  

जहाँ विश्व के बहुत सारे देश किसानों के लिए नित नयी योजनाएं एवं प्रशिक्षण संसथान खोल रहें हैं वहीं भारत में भी  सरकार को किसानों के उत्थान के लिए योजनाएं बनानी पड़ेंगी। सरकारी तंत्र में भी सुधार की आवश्यकता है। किसानों को मिलने वाली योजनाओं का फायदा तो संपन्न किसान या जुगाड़ू लोग  हैं, इसलिए किसानों के लिए बनी योजनाओं का फायदा सही रूप से किसानों को ही मिले यह भी निश्चित करना होगा। किसानों को बैंक कर्ज से राहत के साथ साथ लधु व घरेलू उद्योगों का भी प्रशिक्षण देना होगा ताकि वह नुकसान की भरपाई के साथ साथ परिवार के लिए अतिरिक्त पैसा भी कमा सकें।  ITI जैसी संस्थाओं में किसानों को प्रशिक्षण दिलवाया जा सकता है।  इसके अलावा सरकार को किसानों को लघु उद्योग लगवाने में भी सहायता करनी चाहिए।   

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