किसान हूं मैं
अन्न दाता
अन्न जो जीवन को शक्ति देता है
सर्दी गर्मी धूप छाव सब सहकर भी
धरती का सीना चिरकर अनाज उगता हूँ
ताकि तुम अपना पेट भर सको
देते क्या हो बदले में
चंद सिक्के
जिससे ना घर चलता है
ना परिवार का पोषण होता है
सपने पूरे होने की तो सपने मे भी नहीं सोचता मैं
मैं कमाऊं तुम खाओ तब ठीक है
तुम कमाओ और मैं खुशहाल हो जाऊँ तब ठीक नहीं है
ऐसा क्यों और किसने किया हुआ है
हक मांग रहा हूं गलत तो नहीं कर रहा
सबको आगे बढ़ाने के लिए कानून है
किसान के लिए सब चुप
क्या चाहते हो इस प्रजाति से
अनाज या इस पर राज
याद रखना
मैं उगाता हूं तो तुम खाते हो
अनाज से राजनीति करोगे
तो भूखे रह जाओगे।।
प्रवीण कुमार वर्मा
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