शहरों का माहौल कुछ ऐसा हो गया है कि किसी को किसी से मतलब नहीं। समाज में क्या हो रहा है किसी को पता ही नहीं। इसका फायदा कुछ लोग खूब उठा रहे है। शहरों में कुछ ठगो ने समाज सुधारकों के नाम का चोला पहन लिया है। इन समाज सुधारकों के कुछ कारनामे पढ़िए।
सरकार ने लोगो की सुविधा के लिए पार्क बनवाए है जिसमें बच्चे खेल सके, बूढ़े जवान घूम फिर सके, धूप सेंक सके इत्यादि। लेकिन कुछ लोगों ने पार्कों के कोने पर धार्मिक स्थल बनवाकर पार्क की जमीन पर कब्जा कर लिया है, ऊपर से खुद को इन स्थलों का ट्रस्टी घोषित करके लोगो द्वारा दिए दान पर कब्जा भी करना शुरू कर दिया है।
शहरों में वैसे ही पेड़ पौधों की कमी है और ऊपर से ऐसे लोग नालो के पास जो पेड़ पौधे लगाए गए है उनको काटकर वहां मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे चर्च के नाम पर सरकारी जमीन का अधिग्रहण करते है ओर दान का पैसा खा जाते है। मैंने सुना कि भगवान सफाई पसंद होते है ओर उन्हें खुश्बूदार फूल इत्र इत्यादि समर्पित किए जाते है, मगर लोगो ने अपने मतलब के लिए भगवान को भी गंदे नाले के बगल में बसा दिया है, क्योंकि उनको सिर्फ उस स्थान पर आने वाले दान से मतलब है, भगवान से नहीं। वहां का देवता तो उनके लिए सिर्फ कमाई का जरिया है।
पार्कों के गेट पर रेहड़िया लगवानी शुरू कर दी है, जो उनकी नाजायज कमाई का जरिया है। फिर छोटी दुकानें लगवाते है ओर उस जगह पर पक्का कब्जा कर लेते है ओर कुछ साल होने पर उस जगह को खाली करवाना सरकार ओर कानून के लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। जब भी कोई इन पार्कों में घूमने आता है तो वह अपना सायकिल स्कूटर इत्यादि पार्क के सामने या आस पास ही खड़ा करना चाहता है। ऐसे में ये नाजायज दुकानदार उनको खूब परेशान करते है। कई बार ऐसी जगहों पर बहुत ट्रैफिक जाम लगता है, मगर ना तो दुकानदारों को, ना ही ऐसे तथाकथित धर्म के ठेकदारों को इसकी परवाह होती है। जनता भुगते तो भुगते।
ऐसे ही हर गली RWA में बना लिया है ओर गली वालों से मनमानी वसूली शुरू कर दी है। जो विरोध करता है उसके घर हजुम बनाकर वसूली करने पहुंच जाते है, डराने धमकाने ओर फसाने की धमकी देने। ऐसे लोग गली के गेटों पर थोड़ी थोड़ी जगह बाहर के लोगो को दुकान बनाने के लिए देते है, खाली पड़े प्लॉटों पर झुग्गी बनवा देते है और उनसे किराया वसूलते हैं, ओर खाली करवाने के नाम पर काफी पैसा भी वसूलते है। इन्हीं झुग्गियों में रहने वाले लोग बाहर छीना झपटी ओर चोरी की वारदातो में लिप्त पाए जाते है, मगर इनको संरक्षण प्राप्त है तो ये पुलिस से भी बच जाते हैं। ओर पुलिस भी 90% ऐसी छीना झपटी ओर चोरी कि रिपोर्ट तक नहीं लिखती तो करवाई का तो सवाल ही नहीं उठता। लोग देश बचाने के नारे तो लगाते है ओर ऐसे लोगो का विरोध तक नहीं कर पाते।
गली से निकलते ही सड़कों पर रेहड़ी पटरी वालों की भरमार मिलेगी, कही टायर पंचर वाला तो कहीं ब्रेड अंडा वाले का अतिक्रमण। मनमाने दाम ओर सेहत के लिए हानिकारक समान खुले आम बिकता है, मगर सब अनदेखा करते रहते हैं। सुबह शाम इनकी वजह से खूब ट्रैफिक जाम लगता है, लोगो को आने जाने में बहुत परेशानी होती है। हर 6 महीने में उन्हीं सड़कों की मुरम्मत, रंगाई पुताई के टेंडर निकलते रहते है जिनके पिछले टेंडर का काम भी पूरा नहीं हुआ होता। ऐसी ऐसी जगह बस स्टॉप बनाकर स्टील के खोखे खड़े कर दिए जाते है जहां अगले 5 साल भी बस आने की सुविधा ना हो। ओर सिटी बस सर्विस के नाम पर धड़ल्ले से घोटाले होते है। लोकल यातायात के नाम पर या तो रिक्शा है या ऑटो वाले और ये भी सवारी से मनमानी कीमत वसूलते है। एक तरफ जाने का काम से काम किराया 10 रुपए और उसी रास्ते पर वापिस आने का किराया 15 रुपए। सवारी अगर ऐतराज के तो झगड़ा करना शुरू कर देते है। पुलिस ओर प्रशासन को सब पता है मगर करते कुछ नहीं क्योंकि वो भी आखिर उनकी कमाई का जरिया ही तो है।
अब ये जनता जो तय करना है कि ऐसे धर्म के ठेकदारों को मनमानी करने देनी है या अच्छे समाज के निर्माण में भागीदार बनना है।
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