हिंदी का पतन

हिंदी का पतन क्यों होता जा रहा है क्योंकि लोगो को हिंदी समझ ही नहीं आती। हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा मात्र रह गयी है, या फिर नोसाखियो की कलम का रोजगार। जो हर रोज अपने तरीके से कुछ भी लिखकर आपको परोसते हैं। ना व्याकरण, ना अलंकरण, ना छंद, ना बंद, ना गद्य, ना पद्य, ना रस, ना रंग, ना सुर, ना ताल। कभी कविता के नाम पर, कभी सरल भाषा के नाम पर कुछ भी बेसिर पैर का लिखे जा रहे हैं। कविताओं की शैलियाँ बदल दी गयी है, छंद, बंद, गद्य, पद्य का तो इनको अता पता ही नहीं है। अलंकार, उपमा, उपेक्षा, कटाक्ष पढ़े हुए बरसों बीत गए हैं। बहुतों को तो घ, ध, द्य इत्यादि का भी फर्क नहीं समझ आता। जैसे कुछ बेसुरे संगीत के बल पर गवइये बन बैठें हैं, वैसे ही कुछ नौसाखिये डिग्री के बल पर कवि बन बैठें हैं। चार पंक्तियाँ गा कर सुनाने पर महाकवि कहलवाते है। इन्ही लोगों की वजह से हिंदी का हास हो रहा है और हिंदी पतन की ओर बढ़ रही है।


राष्ट्र निर्माण में हिंदी का बहुत बड़ा योगदान रहा है।  बड़े बड़े कवियों, कथाकारों, लेखकों, कलाकारों, गायकों इत्यादि ने हिंदी को जिस शीर्ष पर पहुँचाया था आज की नौजवान पीढ़ी उसे याद भी नहीं रखना चाहती।  मोबाईल क्रांति ने तो हिंदी शब्दों को ही इंग्लिश में लिखना सीखा दिया है जिस से यह पीढ़ी हिंदी शब्दों की बनावट तक भूल चुकी है।  बोलचाल की आम भाषा हिंगलिश हो गयी है और हिंदी लिखने के लिए गूगल ट्रांसलेटर की जरुरत पड़ने लगी है। यही राष्ट्रीय भाषा हिंदी के पतन की शुरुआत है और आने वाली 2 -3 पीढ़ियों के बाद शायद इसे भुला भी दिया जाये। जिस भाषा के पढ़ने और पढ़ाने वाले ना बचे उस भाषा का बचना मुश्किल है। 


मात्र समाचार पत्र पढ़ने या फिर टीवी पर समाचार देखने सुनने से हिंदी का उत्थान नहीं हो सकता। हिंदुओ की पहचान उनकी भाषा हिंदी ही है, इसलिए सरकार को हिंदी के बचाव ओर उत्थान के लिए सार्थक कदम उठाने चाहिए। भारत के हर कोने मे हिंदी अनिवार्य रूप से पाठ्यकर्म का हिस्सा होनी चाहिए और हिंदी साहित्य भी पढाया जाना चाहिए तभी हिंदी मजबूत भाषा बन सकती है। आइये इस मुहिम का हिस्सा बनें और आगे से हिंदी मे ही संदेश भेजने का प्रयास करें। जय भारत।। 

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