एक इंसान (जैसा कि वो खुद को अब मानता है) जिसके पास करने को कुछ नहीं था, किस्मत ऐसी की जिस भी काम में हाथ डाले वो बर्बाद, जो बात कहे वो मजाक बन जाए। उसने सोचा की लोग उसे सीरियस क्यों नहीं लेते, इसका पता लगाया जाए। उसने लोगों से मिलकर यह जानने का फैसला किया। पहले वह लोगों को बुलाकर मिलता था या लोग उस से मिलने आते थे। या फिर वो मिलने भी जाता था तो हवाई जहाज से जाता था।
इस बार वह सड़क से जा रहा था। पैदल चलकर लोगों से मिल रहा था। वह लोगों को बुला रहा था, अपने आने की अग्रिम सूचना भिजवा रहा था कि मैं फ्लां दिन यहां से गुजरूंगा, मुझसे मिलने आना, मुझे देखने आना। लोग आए, मिले, फोटो खिंचवाई, चले गए। ना मन में मलाल, ना कोई ख्याल, बस सबका अपना मतलब था। मिलने वाले का भी और मिलने आने वालों का भी।(जो नहीं मिल - देख पाए उनको कोई मलाल, दुख, खेद नहीं हुआ)। वैसे भी एक विशेष वर्ग के लोग ही उसमे उससे मिलने आए थे। चलते चलते शक्ल बदल गई थी, तो बहुतों ने पहचाना भी नहीं। इसको भी उन्होंने "भारत जोड़ो यात्रा" नाम दे दिया क्योंकि वो व्यक्ति कन्याकुमारी से काश्मीर तक चलकर गया।
एक दूसरे रास्ते से एक शिला नेपाल से अयोध्या के लिए वाहन से यात्रा पर निकली। जिस जिस को जहां जहां भी पता चला, उस शिला की एक झलक पाने को दौड़ पड़ा। बिना बुलाए भी रास्तों में उमड़ी उस भीड़ की आंखे बस नजर भर कर उस शिला के दर्शन मात्र को लालायित थी। जिन्होंने उस शिला को देख लिया वो आंसू नहीं रोक पाए। जो छू पाए वो आलौकिक मससूस करने लगे। उस वाहन को छू लेना भी दिग्दर्शन से कम नहीं था। इस रास्ते से गुजरे हैं यह सोच कर भी जाने कितनों ने उस रास्ते की मिट्टी को मस्तक पर लगाया और अपना शीश नवाया। इसी रास्ते से आयेंगे, जाने कितनी शबरी इसी आस में आखें बिछाए बैठी थी। जो दर्शन नहीं कर पाए, उनका मलाल, दुख, खेद शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। जो साक्षात नहीं देख पाए, इस जीवन में उनके दर्शन हो जाए उनकी बस यही कामना थी। उस शिला को शिला रूप में किसी ने नहीं देखा। जिसने भी देखा उसने उस सांवले सलोने की मूरत को देखा और उसी का दर्शन किया जो उनके मन में बसा था। किसी को पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई कि ये क्या है और क्या बनने जा रहा है। जिन्होने तस्वीर में भी देखा उन्होने तस्वीर को हृदय से लगा लिया। खुद को उसमें और उसको खुद में समाहित करने की अनुभूति ने दोनों को जोड़ दिया। हर वर्ग के लोगों ने इस जुड़ाव को महसूस किया। जोड़ो जोड़ो के नारे लगाने से नहीं, मन से जुड़ने से जुड़ाव होता है। यही असली भारत जोड़ो यात्रा थी।
जय श्री राम।।
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