भीतर





मै वो जिंदगी जीता हुं यारो 
जो ना अपनो में ना बेगानों में
ये रिश्तो के पैमाने है यारो 
नहीं भरे जाते किसी मयखानो में 

हरे जख्म ओर सर्द हवाएं
कितने बाहर कितने अंदर किसे बताएं
घुटन जो भीतर ही भीतर खाये जाए 
कुछ बाते ऐसी जो किसी को ना बताई जाए  

खुद ही जख्मो पर मलहम लगा लेते हैं 
बात जो जबां पे आनी होती है उसे दबा लेते हैं
मेरी शख्सियत का अंदाजा इसी से लगा लो यारो 
मन का साफ हूँ मगर लोग कोढ़ी समझ लेते है 

पढ़ कर छोड़ देते है लोग जिंदगी को 
पलट कर पन्ने कागज समझकर 
चाहिए वो जो शब्दों को समा ले खुद में 
समझ ले किताब मगर रख ले दिल में 

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